अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला खामेनेई पर कड़ी टिप्पणी की है और उन्हें खरी-खरी सुनाते हुए सख्त चेतावनी दी है। ट्रंप ने खामेनेई पर एहसान फरामोशी का आरोप लगाते हुए कहा कि अगर ईरान फिर से परमाणु हथियार बनाने की कोशिश करता है या ऐसा करने का प्रयास करता है तो अमेरिका उसे बमबारी करने से कतई नहीं हिचकिचाएगा। उन्होंने खामेनेई के विवादित बयानों को सीधे तौर पर निशाना बनाया और कहा कि जब ईरान युद्ध जीतने में असफल रहा है तो फिर इजरायल के खिलाफ जीत का दावा क्यों करता है। ट्रंप ने यह भी स्पष्ट किया कि अमेरिका ने खामेनी की जान बचाई है, वरना इजरायल के हाथों उनकी मौत तय थी, लेकिन इसके बावजूद उन्हें धन्यवाद देने के बजाय विरोधी बयान जारी कर रहे हैं।
ट्रंप का तीखा हमला और चेतावनी
डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम और सुप्रीम लीडर के बयानों पर कटाक्ष करते हुए कहा कि अमेरिका ने ईरान को पुनर्निर्माण के लिए आर्थिक सहयोग देने की योजना बनाई थी, जिसमें कुछ फंड रिलीज़ करना और प्रतिबंधों को कम करना शामिल था। लेकिन ईरान के असहयोग और आक्रामक रवैये को देखते हुए अब कोई भी राहत नहीं दी जाएगी। ट्रंप ने ईरान को साफ-साफ चेतावनी दी कि अगर उन्होंने फिर से परमाणु हथियारों के निर्माण की दिशा में कदम बढ़ाए तो अमेरिका तुरंत और बड़े पैमाने पर हमले से पीछे नहीं हटेगा।
अयातुल्ला खामेनेई के अमेरिका विरोधी बयान
ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला खामेनेई ने हाल ही में एक संदेश जारी किया था जिसमें उन्होंने कहा था कि अमेरिका ईरान के परमाणु ठिकानों को हुए नुकसान को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहा है। इसके साथ ही उन्होंने अमेरिकी हमलों को गंभीर खतरे के रूप में पेश करते हुए चेतावनी दी कि अगर अमेरिका ने फिर से हमले किए तो ईरान बड़ा जवाब देगा। खामेनेई का यह बयान अमेरिका और ईरान के बीच तनाव को और बढ़ा गया।
इस पर जवाब देते हुए ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर पोस्ट किया कि ईरान ने कभी भी युद्ध में जीत हासिल नहीं की है, फिर भी वे विजेता होने का दावा करते हैं। उन्होंने यह भी लिखा कि अमेरिका के पास उनकी लोकेशन की पूरी जानकारी है और इजरायल के मुकाबले उन्होंने उन्हें मौत से बचाया है। इसके बावजूद खामेनेई आभार व्यक्त करने के बजाय उल्टे विरोधी बयान जारी कर रहे हैं।
अमेरिका ने ईरान को राहत देने से मना किया
ट्रंप ने बताया कि अमेरिका ने पहले ईरान पर लगे प्रतिबंधों को हटाने या कम करने पर विचार किया था, ताकि दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार हो सके और शांति स्थापित हो। लेकिन ईरान की ओर से सहयोग की बजाय नफरत और विरोध के स्वर सुनाई दिए। इसके चलते अमेरिका ने प्रतिबंधों में कोई ढील देने का विचार पूरी तरह छोड़ दिया है।
ईरान ने भी स्पष्ट किया है कि वह अमेरिका के साथ फिर से परमाणु वार्ता में शामिल नहीं होगा। ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने संयुक्त राष्ट्र की अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (INEA) के निदेशक राफेल ग्रॉसी के उस अनुरोध को खारिज कर दिया, जिसमें ईरान के परमाणु ठिकानों का निरीक्षण करने की बात कही गई थी।
परमाणु वार्ता को लेकर स्थिति जटिल
ईरान और अमेरिका के बीच परमाणु वार्ता को लेकर चल रही बातचीत फिलहाल ठंडे बस्ते में है। ट्रंप ने पहले संकेत दिया था कि वह ईरान के साथ पुनः बातचीत के लिए तैयार हैं, लेकिन ईरान ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। इधर, ईरान ने संयुक्त राष्ट्र में भी उन प्रयासों का विरोध किया जो अमेरिका और इजरायल के बमबारी वाले हमलों की जांच को लेकर थे। ईरान ने इस मामले में संयम और सहयोग नहीं दिखाया, जिससे अमेरिका और उसके सहयोगी देशों में निराशा बढ़ी है।
अमेरिका-ईरान तनाव के बढ़ते साये में क्षेत्रीय सुरक्षा
ईरान और अमेरिका के बीच जारी कड़वे बोल-चाल और परमाणु मुद्दे ने क्षेत्रीय सुरक्षा की स्थिति को काफी अस्थिर कर दिया है। खामेनेई और ट्रंप के बयान दोनों ही देशों के बीच युद्ध की आशंका को बढ़ाते दिख रहे हैं। मध्य पूर्व में अमेरिका का सहयोगी इजरायल भी इस तनाव का केंद्र बना हुआ है। इजरायल और ईरान के बीच पहले ही कई सैन्य टकराव हो चुके हैं, और अमेरिकी हस्तक्षेप के कारण स्थिति और पेचीदा हो गई है।
निष्कर्ष
डोनाल्ड ट्रंप का अयातुल्ला खामेनेई पर कड़ा रुख और चेतावनी इस बात की गवाही है कि अमेरिका ईरान के परमाणु कार्यक्रम को किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं करेगा। दोनों देशों के बीच कूटनीतिक बातचीत फिलहाल ठप्प है, और स्थिति युद्ध की तरफ बढ़ती नजर आ रही है। ट्रंप का साफ संदेश है कि अमेरिका ने ईरान को काफी मौका दिया, लेकिन अब समय आ गया है कि कठोर कदम उठाए जाएं।
यदि ईरान अपनी परमाणु महत्वाकांक्षाओं को रोकने में विफल रहता है, तो अमेरिका उसे बमबारी करने से नहीं हिचकेगा। ऐसे में मध्य पूर्व की सुरक्षा और स्थिरता के लिए चिंता की घड़ी आ चुकी है। भविष्य में दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ सकता है, जिससे वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य पर भी गहरा असर पड़ने की संभावना है।